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Lotus farming

कमल की नवीन किस्म नमो 108 का हुआ अनावरण, हर समय खिलेंगे फूल

कमल की नवीन किस्म नमो 108 का हुआ अनावरण, हर समय खिलेंगे फूल

एनबीआरआई परिसर में कमल की नवीन वैरायटी नमो-108 का अनावरण किया। साथ ही, इस समारोह में लोटस मिशन का भी लॉन्च किया गया। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं साथ ही पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार के दिन 108 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की एक उल्लेखनीय नवीन किस्म का अनावरण किया। ऐसा कहा जा रहा है, कि यह किस्म वनस्पति अनुसंधान के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण विकास है।

'नमो 108' कमल पोषक तत्व सामग्री से युक्त है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यह अनावरण समारोह एनबीआरआई परिसर में हुआ, जहां डॉ. जितेंद्र सिंह ने कमल के फूल एवं संख्या 108 दोनों के धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व पर बल दिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि दोनों तत्वों के इस संलयन ने नई किस्म को एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण पहचान अदा की है। 'नमो 108' कमल की किस्म मार्च से दिसंबर तक की समयांतराल तक फूलने की अवधि का दावा करती है। साथ ही, यह पोषक तत्व सामग्री की खासियत से युक्त है।

कमल के क्या-क्या उत्पाद हैं

बतादें, कि इस अवसर पर 'नमो-108' कमल किस्म से प्राप्त उत्पादों की एक श्रृंखला भी जारी की गई। इन उत्पादों में कमल के रेशे से निर्मित परिधान एवं 'फ्रोटस' नामक इत्र आदि शम्मिलित हैं, जो कमल के फूलों से निकाला जाता है। इन उत्पादों का विकास एफएफडीसी, कन्नौज की सहायता से आयोजित लोटस रिसर्च प्रोग्राम का हिस्सा था। ये भी देखें: अब कमल सिर्फ तालाब या कीचड़ में ही नहीं खेत में भी उगेगा, जानें कैसे दरअसल, इस विशिष्ट कमल किस्म को 'नमो- 108' नाम देने के लिए सीएसआईआर-एनबीआरआई की तारीफ करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थायी समर्पण एवं सहज सुंदरता के रूप में देखा। बतादें, कि यह अनावरण प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के दसवें वर्ष के साथ हुआ, जिससे इस अवसर पर स्मरणोत्सव की भी भावना जुड़ गई।

लोटस मिशन के अनावरण को चिह्नित किया गया है

कार्यक्रम के दौरान ‘लोटस मिशन’ के अनावरण को चिह्नित किया, जो कि लोटस-आधारित उत्पादों एवं अनुप्रयोगों के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को आगे बढ़ाने के मकसद से एक व्यापक कोशिश है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर रौशनी डालते हुए इस मिशन की तुलना बाकी प्राथमिकता वाली योजनाओं से की है। उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि, प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में लोटस मिशन जैसी अहम कवायद की प्रभावशीलता एवं प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना तैयार की गई थी। अनावरणों में डॉ. जितेंद्र सिंह ने मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से निकाले गए हर्बल रंगों को प्रस्तुत किया। इन सब हर्बल रंगों के विविध अनुप्रयोग हैं, जिनमें रेशम एवं सूती कपड़ों की रंगाई भी शम्मिलित है। इसके अतिरिक्त 'एनबीआरआई-निहार' ('NBRI-NIHAR') नामक एलोवेरा की एक नवीन प्रजाति पेश की गई, जिसमें नियमित एलोवेरा उपभेदों के मुकाबले काफी ज्यादा जेल पैदा होती है। इस किस्म ने बैक्टीरिया फंगल रोगों के विरुद्ध भी लचीलापन प्रदर्शित किया है।
कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कम लागत में ज्यादा मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता ! लेकिन कम लागत में खेत पर कमल उगाने की बात पर चौंकना लाजिमी है, क्योंकि आम तौर पर सुनते आए हैं कि कमल कीचड़ में ही खिलता है। 

जी हां, कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कम लागत में ज्यादा उत्पादन, संग-संग ज्यादा कमाई के लिए कृषकों को खेतों में कमल की खेती करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने कमल को कम लागत में भरपूर उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसलों की श्रेणी में शामिल किया है। 

लेकिन यह बात भी सच है -

जमा तौर पर माना जाता है कि तालाब झील या जल-जमाव वाले गंदे पानी, दलदल आदि में ही कमल पैदा होता, पनपता है। लेकिन आधुनिक कृषि विज्ञान का एक सच यह भी है कि, खेतों में भी कमल की खेती संभव है। 

न केवल कमल को खेत में उगाया जा सकता है, बल्कि कमल की खेती में समय भी बहुत कम लगता है। अनुकूल परिस्थितियों में महज 3 से 4 माह में ही कमल के फूल की पैदावार तैयार हो जाता है।

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कमल के फूल का राष्ट्रीय महत्व -

भारत के संविधान में राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा रखने वाले कमल का वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो नुसिफेरा (Nelumbo nucifera, also known as Indian lotus or Lotus) है। भारत में इसे पवित्र पुष्प का स्थान प्राप्त है। 

भारत की पौराणिक कथाओं, कलाओं में इसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के शुभ प्रतीक कमल को उनके रंगों के हिसाब से भी पूजन, अनुष्ठान एवं औषथि बनाने में उपयोग किया जाता है। 

सफेद, लाल, नीले, गुलाबी और बैंगनी रंग के कमल पुष्प एवं उसके पत्तों, तनों का अपना ही महत्व है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार कमल का उद्गम भगवान श्री विष्णु जी की नाभि से हुआ था। 

बौद्ध धर्म में कमल पुष्प, शरीर, वाणी और मन की शुद्धता का प्रतीक है। दिन में खिलने एवं रात्रि में बंद होने की विशिष्टता के अनुसार मिस्र की पौराणिक कथाओं में कमल को सूर्य से संबद्ध माना गया है।

कमल का औषधीय उपयोग -

अत्यधिक प्यास लगने, गले, पेट में जलन के साथ ही मूत्र संबंधी विकारों के उपचार में भी कमल पुष्प के अंश उत्तम औषधि तुल्य हैं। कफ, बवासीर के इलाज में भी जानकार कमल के फूलों या उसके अंश का उपयोग करते हैं।

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खेत में कमल कैसे खिलेगा ?

हालांकि जान लीजिये कमल की खेती के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। खास तौर पर नमीयुक्त मिट्टी इसकी पैदावार के लिए खास तौर पर अनिवार्य है। 

यदि भूमि में नमी नहीं होगी तो कमल की पैदावार प्रभावित हो सकती है। मतलब साफ है कि खेत में भी कमल की खेती के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी है। ऐसे में मौसम के आधार पर भी कमल की पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।

खास तौर पर मानसून का माह खेत में कमल उगाने के लिए पुूरी तरह से मददगार माना जाता है। मानसून में बारिश से खेत मेें पर्याप्त नमी रहती है, हालांकि खेत में कम बारिश की स्थिति में वैकल्पिक जलापूर्ति की व्यवस्था भी रखना जरूरी है।

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खेत में कमल खिलाने की तैयारी :

खेत में कमल खिलाने के लिए सर्व प्रथम खेत की पूरी तरह से जुताई करना जरूरी है। इसके बाद क्रम आता है जुताई के बाद तैयार खेतों में कमल के कलम या बीज लगाने का। इस प्रक्रिया के बाद तकरीबन दो माह तक खेत में पानी भर कर रखना जरूरी है। 

पानी भी इतना कि खेत में कीचड़ की स्थिति निर्मित हो जाए, क्योंकि ऐसी स्थिति में कमल के पौधों का तेजी से सुगठित विकास होता है। भारत के खेत में मानसून के मान से पैदा की जा रही कमल की फसल अक्टूबर माह तक तैयार हो जाती है। 

जिसके बाद इसके फूलों, पत्तियों और इसके डंठल ( कमलगट्टा ) को उचित कीमत पर विक्रय किया जा सकता है। मतलब मानसून यानी जुलाई से अक्टूबर तक के महज 4 माह में कमल की खेती किसान के लिए मुनाफा देने वाली हो सकती है।

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कमल के फूल की खेती की लागत और मुनाफे का गणित :

एक एकड़ की जमीन पर कमल के फूल उगाने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं। इतनी जमीन पर 5 से 6 हजार पौधे लगाकर किसान मित्र वर्ग भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं। 

बीज एवं कलम आधारित खेती के कारण आंकलित जमीन पर कमल उपजाने, खेत तैयार करने एवं बीज खर्च और सिंचाई व्यय मिलाकर 25 से 30 हजार रुपयों का खर्च किसान पर आता है।

1 एकड़ जमीन, 25 हजार, 4 माह -

पत्ता, फूल संग तना (कमलगट्टा) और जड़ों तक की बाजार में भरपूर मांग के कारण कमल की खेती हर हाल में मुुनाफे का सौदा कही जा सकती है। कृषि के जानकारों के अनुसार 1 एकड़ जमीन में 25 से 30 हजार रुपयों की लागत आती है।

इसके बाद 4 महीने की मेहनत मिलाकर कमल की पैदावार से अनुकूल स्थितियों में 2 लाख रुपयों तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।